भारत में चक्रवात
पिछले 30 वर्षों में जलवायु से जुड़ी आपदाओं के मामले में भारत का स्थान नौवां है। 1995 से 2024 के बीच सूखा, लू और बाढ़ जैसी लगभग 430 चरम मौसमी घटनाओं ने 80,000 से अधिक लोगों की जान ले ली। यह जानकारी पर्यावरण थिंक टैंक जर्मनवॉच द्वारा ब्राज़ील के बेलेम में आयोजित COP30 में प्रस्तुत जलवायु जोखिम सूचकांक (CRI) 2026 में दी गई है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि लगभग 170 अरब अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है।
भारत में होने वाले नुकसान का मुख्य कारण बार-बार आने वाली बाढ़, चक्रवात, सूखा और लू हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग के कारण और अधिक बढ़ गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 1998 का गुजरात चक्रवात, 1999 का ओडिशा सुपर साइक्लोन, 2013 का उत्तराखंड बाढ़ और हाल ही में आई जानलेवा लू जैसी घटनाओं के कारण भारत को सीआरआई रैंकिंग में 9वां स्थान प्राप्त हुआ है।
विकास में बाधा बनती आपदाएंरिपोर्ट के अनुसार, ये आपदाएं अब कभी-कभी नहीं, बल्कि लगातार खतरा बन चुकी हैं। हर साल बाढ़, चक्रवात, सूखा और लू जैसी घटनाएं बार-बार होती हैं, जिससे देश के विकास के लिए बनाई गई नई सड़कें, स्कूल और कृषि को नुकसान पहुंचता है। इससे गरीबी बढ़ती है, लोगों की आजीविका प्रभावित होती है और देश की प्रगति की गति धीमी हो जाती है। भारत की विशाल जनसंख्या (लगभग 1.4 अरब) और मानसून की अनिश्चितता इसे और कमजोर बनाते हैं।
सबसे अधिक प्रभावित देश कौन सा है?2024 में, भारत भारी मानसूनी बारिश और अचानक आई बाढ़ से 80 लाख से अधिक लोगों पर असर पड़ा, विशेषकर गुजरात, महाराष्ट्र और त्रिपुरा में। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष बाढ़ और तूफान के कारण वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक नुकसानदायक घटनाएं हुई थीं, जिनसे अरबों डॉलर का नुकसान हुआ।
जर्मनवॉच के अनुसार, 1995 से 2024 के बीच वैश्विक स्तर पर 9,700 मौसमी घटनाओं ने 8.3 लाख से अधिक लोगों की जान ली और लगभग 5.7 अरब लोगों को प्रभावित किया, जिससे लगभग 4.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ। पिछले तीन दशकों में डोमिनिका सबसे अधिक प्रभावित देश रहा है, इसके बाद म्यांमार, होंडुरास, लीबिया, हैती, ग्रेनाडा, फिलीपींस, निकारागुआ, भारत और बहामास का स्थान है.
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