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43 साल पहले मनहूस रात में हुआ डबल मर्डर, वारदात पर बनी सुपरहिट फिल्म, हत्यारे का दोस्त ही पर्दे पर बना विलेन

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बड़े पर्दे पर क्राइम की कहानियों ने हमेशा से दर्शकों को खूब रोमांचित किया है। यह थ्र‍िल और बढ़ जाता है, जब फिल्‍म किसी काल्‍पनिक कहानी की बजाय असल जिंदगी की झकझोर देने वाली घटनाओं पर आधारित होती है। 43 साल पहले, असल जिंदगी में खौफनाक डबल मर्डर पर एक ऐसी फिल्‍म आई थी, जिसने भारतीय सिनेमा को नया सुपरस्‍टार दिया था। दिलचस्‍प बात यह है कि इस फिल्‍म में असल वारदात में शामिल हत्‍यारे के दोस्‍त ने ही उसकी भूमिका यानी मेन विलेन का रोल निभाया था।

बात साल 1982 की है। मॉलीवुड में 'मद्रासाइल मोन' नाम से एक फिल्‍म रिलीज हुई थी। मोहनलाल, जो आज इंडस्ट्री के सबसे बड़े सुपरस्टार्स में से हैं, उनके करियर की यह पहली बड़ी हिट फिल्‍मों में से एक थी। एक ऐसी फिल्‍म, जिसने मोहनलाल को पर्दे पर प्रसिद्ध‍ि दिलाई। इस फिल्‍म की कहानी एक ऐसे अपराध की दास्‍तान थी, जिसने दर्शकों को झकझोर कर रख दिया था।

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फिल्‍म में रवींद्रन बने थे हत्‍यारे, असल जिंदगी में दोस्‍त था मुख्‍य आरोपी
'मद्रासाइल मोन' का डायरेक्‍शन शशिकुमार ने किया था। स्‍क्रीनप्‍ले पीएम नायर ने लिखी थी। यह फिल्‍म कवियूर शिवरामन पिल्लई की कहानी पर आधारित थी। मजेदार बात यह है कि फिल्‍म का नाम इस असल घटना के मुख्‍य आरोपी के नाम पर रखा गया था। यह किरदार अभिनेता रवींद्रन ने निभाई थी। जबकि मोहनलाल की इसमें खूब तारीफ हुई थी। एक इंटरव्‍यू में, रवींद्रन ने खुलासा किया कि हत्या से पहले वह असल जिंदगी में इसके मुख्‍य आरोपी रेनी के दोस्त थे। एक्‍टर ने बताया, 'हम साथ रहते थे। इस वारदात से लगभग तीन महीने पहले, मेरा उससे झगड़ा हुआ था।'

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'करिकन विला डबल मर्डर' पर बनी थी फिल्‍म
'मद्रासाइल मोन' कुख्यात 'करिकन विला डबल मर्डर' केस से प्रेरित थी। यह एक ऐसी वारदात थी, जिसने 1980 के दशक में पूरे केरल को हिलाकर रख दिया था। फिल्‍म की कहानी 6 अक्टूबर, 1980 की मनहूस रात से शुरू होती है, जिसमें एक अधेड़ उम्र के कपल केसी जॉर्ज (63) और रेचल (56) की, पथानामथिट्टा जिले के तिरुवल्ला स्थित उनके घर 'करिकन विला' में बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इस कपल की कोई संतान नहीं थी। दोनों मियां-बीवी तिरुवल्ला में बसने से पहले कई वर्षों तक कुवैत में रह चुके थे।

सुबह सबसे पहले नौकरानी ने देखी थी दोनों लाश
देर रात हुई इस हत्‍या के बाद अगली सुबह जब नौकरानी गौरी घर आई, तो उसने सबसे पहले खून से सनी लाशें देखीं। दोनों को चाकू मारा गया था। रेचल के शरीर में चाकू धंसा हुआ था। पुलिस ने जांच शुरू की तो पता चला कि रेचल के गहने, जॉर्ज की रोलेक्स घड़ी, एक टेप रिकॉर्डर और काफी नकदी गायब थी। 'मनोरमा ऑनलाइन' के मुताबिक, पुलिस को घर के अंदर बिखरे खून से सने कागजों पर नए जूतों के हल्के निशान दिखे थे।

नौकरानी के खुलासे पुलिस ने सुलझाई थी गुत्‍थी
पुलिस की जांच में नौकरानी गौरी ने एक चौंकाने वाले खुलासे ने नया मोड़ दे दिया था। उसने बताया कि हत्‍या से पिछली शाम, जब वह काम से लौट रही थी, तो एक कार में चार लोग आए थे। उन्हें देखकर, रेचल ने उससे चाय बनाने को कहा था। पचास साल की रेचल ने खुद उन्हें चाय पिलाई, उसने गौरी को बताया कि यह 'मद्रासिले मोन' है (मलयालम में, मोन का शाब्दिक अर्थ बेटा होता है)। इस सुराग से पुलिस का शक गहराया कि जॉर्ज के रिश्तेदार, रेनी जॉर्ज, जो मद्रास (चेन्नई) में पढ़ रहा था, इस दोहरे हत्याकांड के पीछे था।

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चेन्‍नई से कार चलाकर आए थे चार लोग
जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि रेनी ने अपने दोस्तों, मॉरीशस के हसन गुलाम मोहम्मद, मलेशिया के गुणशेखरन और केन्या के किब्लो डैनियल, की मदद से इस अपराध को अंजाम दिया था। चारों मद्रास में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे और शराब व ड्रग्स के आदी थे। जांचकर्ताओं को पता चला कि वे अपनी लत पूरी करने के लिए पहले भी छोटी-मोटी चोरियां करते रहे थे। लेकिन इस बार वो हत्या करने और पैसे चुराने के लिए चेन्नई से तिरुवल्ला गाड़ी चलाकर आए थे। आरोपियों के विदेशी जूते, जिनके निशान मौका-ए-वारदात पर मिले ने उनकी संलिप्तता की पुष्टि की। पुलिस ने घर से रेनी के जूते भी बरामद किए।

कोर्ट ने चारों को सुनाई आजीवन कारावास की सजा
साल 1982 में कोट्टायम की अदालत ने चारों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। हालांकि उन्होंने हाई कोर्ट में अपील की, लेकिन 1983 में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा गया। जेल में पहले तो रेनी में कोई पछतावा नहीं दिखा और कथित तौर पर उसने जेल के अंदर भी नशीली दवाओं का सेवन और तस्करी जारी रखा। जब यह फिल्‍म बन रही थी, तब पैरोल पर बाहर रहते हुए, उसने 'मद्रासाइल मोन' के निर्माता को धमकी भी थी।

अब कहां हैं हत्‍या में शामिल चारों दोषी
हालांकि, रेनी का मन धीरे-धीरे बदल गया। उसकी कैद जून 1995 में समाप्त हो गई। गुलाम, गुणशेखरन और किब्लो अपने-अपने मूल स्थान पर लौट गए, जबकि रेनी ने धर्मप्रचार शुरू कर दिया। पैरोल के दौरान ही उसने शादी भी कर ली। उसने केरल और कर्नाटक में बंद कैदियों के बच्चों के लिए बेंगलुरु में एक एनजीओ की शुरुआत की। बताया जाता है कि अब वह अपने परिवार के साथ बेंगलुरु में रहता है।
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