बॉलीवुड में ऐसे कई फिल्ममेकर्स हैं, जिनकी फिल्मों में किरदार और कहानी के साथ-साथ सेट भी बेहद अहम होते हैं। यही वजह है कि उनकी फिल्मों में आलीशान और महंगे सेट नजर आते हैं, जिन्हें बनाने में करोड़ों रुपये भी पानी की तरह बहा दिए जाते हैं। लेकिन यहां एक ऐसी फिल्म के बारे में बता रहे हैं, जिसका सेट तो खूब आलीशान और महंगा था ही, पर उसके एक सीन के लिए पूरे मुंबई के जेनरेटरों का इस्तेमाल किया गया था। जानते हैं यह फिल्म कौन सी है?
यह फिल्म 1917 में आई एक किताब पर आधारित थी। डायरेक्टर ने साल 1999 में फिल्म का ऐलान किया था और 10 महीनों में इसके आलीशान सेट बनकर तैयार हुए थे। सेट बनाने में 36.21 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
फिल्म का नाम 'देवदास', आलीशान से सेट भव्य लाइट तक
इस फिल्म का नाम है 'देवदास', जिसमें शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय और माधुरी दीक्षित के अलावा जैकी श्रॉफ समेत कई एक्टर्स थे। इसे संजय लीला भंसाली ने डायरेक्ट किया था, जो अपनी फिल्मों में आलीशान सेट, गजब की लाइटिंग, साउंड, डिजाइन और कॉस्ट्यूम के लिए जाने जाते हैं। इस फिल्म ने पांच नेशनल अवॉर्ड जीते थे। यह साल 2002 की सबसे महंगी और सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म रही।
सिनेमैटोग्राफर विनोद प्रधान ने बताया कैसे शूट किए थे आलीशान सीन
'शेमारू लाइफस्टाइल' को दिए इंटरव्यू में मशहूर सिनेमैटोग्राफर विनोद प्रधान ने बताया कि फिल्म के भवय सीन्स को कैमरे में कैद करने के लिए क्या-क्या प्रयास किए गए थे। विनोद प्रधान ने बताया कि फिल्म के एक खास सीक्वेंस के लिए, मनचाही लाइटिंग इफेक्ट बनाने के लिए मुंबई के हर जनरेटर का इस्तेमाल किया गया था। यह एक ऐसा किस्सा है जो संजय लीला भंसाली की परफेक्शन की चाहत को बखूबी दर्शाता है।
'देवदास' का सेट आर्टिफिशियल लेक पर बना था
विनोद प्रधान ने फिर बताया कि 'देवदास' का आलीशान सेट देख कैसे उनकी आंखें फटी रह गई थीं। सेट को दिवंगत आर्ट डायरेक्टर नितिन चंद्रकांत देसाई ने डिजाइन किया था। सेट को आर्टिफिशियल लेक पर बनाया गया था, जो बेहद विशाल था। वह बोले, 'यह मेरी गलती नहीं थी। सेट तैयार था, और फिर मैं अपने असिस्टेंट्स के साथ वहां गया। सेट देखने के लिए मुझे झील के चारों ओर घूमना पड़ा क्योंकि वह एक जगह पर नहीं था। अगर मैं यहां बैठा होता, तो मैं सामने से सेट देख पाता। इसलिए, मैं और मेरे असिस्टेंट्स ने बस एक चक्कर लगाया और वापस आ गए। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कहां से शुरू करूं।'
लाइटिंग के लिए मुंबई के सारे जेनरेटर का इस्तेमाल
अब जब सेट इतना विशाल था, तो लाइटिंग का ट्रेडिशनल तरीका जमता नहीं। इसलिए 'देवदास' में लाइटिंग के लिए जो प्रयोग के रूप में डिजाइन शुरू हुआ, वह बाद में किसी भी भारतीय फिल्म सेट पर अब तक के सबसे महत्वाकांक्षी लाइटिंग डिजाइन्स में से एक बन गया।
'देवदास' में ऐसे हुआ लाइटिंग सिस्टम
लाइटिंग सिस्टम कैसे शुरू हुआ था, इस बारे में विनोद प्रधान ने बताया, 'मैंने सोचा कि चलो उस टावर के अंदर एक 100 वाट का बल्ब लगाते हैं। तो लाइटिंग की व्यवस्था उस बल्ब से शुरू हुई और फिर बढ़ती गई जब तक कि मैंने मुंबई के सभी जनरेटर इस्तेमाल नहीं कर लिए। मुझे याद नहीं कि उस समय शादियों का मौसम था या नहीं।'
यह फिल्म 1917 में आई एक किताब पर आधारित थी। डायरेक्टर ने साल 1999 में फिल्म का ऐलान किया था और 10 महीनों में इसके आलीशान सेट बनकर तैयार हुए थे। सेट बनाने में 36.21 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
फिल्म का नाम 'देवदास', आलीशान से सेट भव्य लाइट तक
इस फिल्म का नाम है 'देवदास', जिसमें शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय और माधुरी दीक्षित के अलावा जैकी श्रॉफ समेत कई एक्टर्स थे। इसे संजय लीला भंसाली ने डायरेक्ट किया था, जो अपनी फिल्मों में आलीशान सेट, गजब की लाइटिंग, साउंड, डिजाइन और कॉस्ट्यूम के लिए जाने जाते हैं। इस फिल्म ने पांच नेशनल अवॉर्ड जीते थे। यह साल 2002 की सबसे महंगी और सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म रही।
सिनेमैटोग्राफर विनोद प्रधान ने बताया कैसे शूट किए थे आलीशान सीन
'शेमारू लाइफस्टाइल' को दिए इंटरव्यू में मशहूर सिनेमैटोग्राफर विनोद प्रधान ने बताया कि फिल्म के भवय सीन्स को कैमरे में कैद करने के लिए क्या-क्या प्रयास किए गए थे। विनोद प्रधान ने बताया कि फिल्म के एक खास सीक्वेंस के लिए, मनचाही लाइटिंग इफेक्ट बनाने के लिए मुंबई के हर जनरेटर का इस्तेमाल किया गया था। यह एक ऐसा किस्सा है जो संजय लीला भंसाली की परफेक्शन की चाहत को बखूबी दर्शाता है।
'देवदास' का सेट आर्टिफिशियल लेक पर बना था
विनोद प्रधान ने फिर बताया कि 'देवदास' का आलीशान सेट देख कैसे उनकी आंखें फटी रह गई थीं। सेट को दिवंगत आर्ट डायरेक्टर नितिन चंद्रकांत देसाई ने डिजाइन किया था। सेट को आर्टिफिशियल लेक पर बनाया गया था, जो बेहद विशाल था। वह बोले, 'यह मेरी गलती नहीं थी। सेट तैयार था, और फिर मैं अपने असिस्टेंट्स के साथ वहां गया। सेट देखने के लिए मुझे झील के चारों ओर घूमना पड़ा क्योंकि वह एक जगह पर नहीं था। अगर मैं यहां बैठा होता, तो मैं सामने से सेट देख पाता। इसलिए, मैं और मेरे असिस्टेंट्स ने बस एक चक्कर लगाया और वापस आ गए। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कहां से शुरू करूं।'
लाइटिंग के लिए मुंबई के सारे जेनरेटर का इस्तेमाल
अब जब सेट इतना विशाल था, तो लाइटिंग का ट्रेडिशनल तरीका जमता नहीं। इसलिए 'देवदास' में लाइटिंग के लिए जो प्रयोग के रूप में डिजाइन शुरू हुआ, वह बाद में किसी भी भारतीय फिल्म सेट पर अब तक के सबसे महत्वाकांक्षी लाइटिंग डिजाइन्स में से एक बन गया।
'देवदास' में ऐसे हुआ लाइटिंग सिस्टम
लाइटिंग सिस्टम कैसे शुरू हुआ था, इस बारे में विनोद प्रधान ने बताया, 'मैंने सोचा कि चलो उस टावर के अंदर एक 100 वाट का बल्ब लगाते हैं। तो लाइटिंग की व्यवस्था उस बल्ब से शुरू हुई और फिर बढ़ती गई जब तक कि मैंने मुंबई के सभी जनरेटर इस्तेमाल नहीं कर लिए। मुझे याद नहीं कि उस समय शादियों का मौसम था या नहीं।'
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