पटनाः बिहार में जाले विधानसभा सीट की जनता इस बार फिर पुराने योद्धाओं के बीच के चुनावी जंग देखने को तैयार बैठी है। पैंतरे बदल कर ही सही पर इस बार कभी राजद की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले ऋषि मिश्रा इस बार कांग्रेस की टिकट पर जाले विधानसभा की जंग में उतर चुके हैं। उधर बीजेपी ने एक बार फिर मंत्री रहे जीवेश मिश्रा पर ही भरोसा कर उन्हें चुनावी रणभूमि में उतारा है। क्या बन रहा है यहां जीत हार का सामाजिक समीकरण? किसके दाव किस पर पड़ रहेरइि हैं भारी। जानते हैं जाले विधानसभा चुनाव किस और बढ़ रहा है।
क्या रहा है चुनावी इतिहास?
वर्ष 2005 में एनडीए सरकार के आने के बाद यहां चुनावी समीकरण बदलते रहे हैं। इस वजह से हार जीत की आंख मिचौली चलती रही। वर्ष 2005 में दो बार चुनाव हुए और राजद के राम निवास प्रसाद ने जीत दर्ज की। पर 2010 में विजय कुमार मिश्रा ने बीजेपी को जीत दिलाकर चुनावी माहौल बदला। वर्ष 2014 में उप चुनाव हुए और जदयू के टिकट पर ऋषि मिश्रा ने जीत कर बाजी एनडीए के नाम की। वर्ष 2015 के विधानसभा के चुनावी जंग में इस सीट पर जदयू और बीजेपी आमने सामने हो गई।
बीजेपी ने जीवेश मिश्रा को तो जदयू ने ऋषि मिश्रा को उतारा। जीत जीवेश मिश्र को मिली। 2020 में जदयू बीजेपी एक हुई तो सीट फिर बीजेपी कोटे में आई। इस बार फिर जीवेश मिश्रा को टिकट मिला और तब कांग्रेस के मशकूर रहमानी को परास्त किया। इस बार वर्ष 2025 के विधानसभा चुनाव में जीवेश मिश्रा, ऋषि मिश्रा और मशकूर रहमानी भी चुनावी जंग में है।
क्या है जाले का सामाजिक समीकरण?
जाले में मुस्लिम, यादव, भूमिहार, ब्राह्मण, रविदास प्रभावकारी वोट हैं। यहां कुल मतदाता की संख्या 2.85 लाख है। गत विधानसभा चुनाव की बात करें तो 1.65 लाख ही वोट पोल हुआ। महागठबंधन के उम्मीदवार को मुस्लिम और यादव का आधार वोट का भरोसा है तो बीजेपी के उम्मीदवार जीवेश मिश्रा को भूमिहार, ब्राह्मण, अतिपिछड़ा और पासवान जाति के वोट पर भरोसा है।
क्या है रणनीति ?
एनडीए के उम्मीदवार जीवेश मिश्रा के जीत के समीकरण का एक विशेष पहलू मुस्लिम मतों का बिखराव बन गया है। 2020 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार मशकूर रहमानी इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप एआईएमआईएम के उम्मीदवार फैसल रहमान भी चुनावी जंग में शामिल हैं। मशकूर रहमानी एक प्रभावी नेता है और वर्ष 2020 में हारने के बाद पांचों वर्ष जाले में जनता के बीच रहे। इनका प्रभाव जितना रंग दिखाएगा वह कांग्रेस उम्मीदवार को नुकसान पहुंचाएगा।
बीजेपी के जीवेश मिश्रा को भाजपा के कोर वोट के साथ उस समुदाय पर भी भरोसा हैं जिनके यहां सड़क पुल और पुलिया उपलब्ध कराए गए। पर साथ में जल निकासी और उद्योग धंधा का विकसित न होना एक मुद्दा बन सकता है। ऐसे में जनता की नब्ज किसके पक्ष में धड़कती है, फैसला उस पर ही दिखने की संभावना है।
क्या रहा है चुनावी इतिहास?
वर्ष 2005 में एनडीए सरकार के आने के बाद यहां चुनावी समीकरण बदलते रहे हैं। इस वजह से हार जीत की आंख मिचौली चलती रही। वर्ष 2005 में दो बार चुनाव हुए और राजद के राम निवास प्रसाद ने जीत दर्ज की। पर 2010 में विजय कुमार मिश्रा ने बीजेपी को जीत दिलाकर चुनावी माहौल बदला। वर्ष 2014 में उप चुनाव हुए और जदयू के टिकट पर ऋषि मिश्रा ने जीत कर बाजी एनडीए के नाम की। वर्ष 2015 के विधानसभा के चुनावी जंग में इस सीट पर जदयू और बीजेपी आमने सामने हो गई।
बीजेपी ने जीवेश मिश्रा को तो जदयू ने ऋषि मिश्रा को उतारा। जीत जीवेश मिश्र को मिली। 2020 में जदयू बीजेपी एक हुई तो सीट फिर बीजेपी कोटे में आई। इस बार फिर जीवेश मिश्रा को टिकट मिला और तब कांग्रेस के मशकूर रहमानी को परास्त किया। इस बार वर्ष 2025 के विधानसभा चुनाव में जीवेश मिश्रा, ऋषि मिश्रा और मशकूर रहमानी भी चुनावी जंग में है।
क्या है जाले का सामाजिक समीकरण?
जाले में मुस्लिम, यादव, भूमिहार, ब्राह्मण, रविदास प्रभावकारी वोट हैं। यहां कुल मतदाता की संख्या 2.85 लाख है। गत विधानसभा चुनाव की बात करें तो 1.65 लाख ही वोट पोल हुआ। महागठबंधन के उम्मीदवार को मुस्लिम और यादव का आधार वोट का भरोसा है तो बीजेपी के उम्मीदवार जीवेश मिश्रा को भूमिहार, ब्राह्मण, अतिपिछड़ा और पासवान जाति के वोट पर भरोसा है।
क्या है रणनीति ?
एनडीए के उम्मीदवार जीवेश मिश्रा के जीत के समीकरण का एक विशेष पहलू मुस्लिम मतों का बिखराव बन गया है। 2020 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार मशकूर रहमानी इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप एआईएमआईएम के उम्मीदवार फैसल रहमान भी चुनावी जंग में शामिल हैं। मशकूर रहमानी एक प्रभावी नेता है और वर्ष 2020 में हारने के बाद पांचों वर्ष जाले में जनता के बीच रहे। इनका प्रभाव जितना रंग दिखाएगा वह कांग्रेस उम्मीदवार को नुकसान पहुंचाएगा।
बीजेपी के जीवेश मिश्रा को भाजपा के कोर वोट के साथ उस समुदाय पर भी भरोसा हैं जिनके यहां सड़क पुल और पुलिया उपलब्ध कराए गए। पर साथ में जल निकासी और उद्योग धंधा का विकसित न होना एक मुद्दा बन सकता है। ऐसे में जनता की नब्ज किसके पक्ष में धड़कती है, फैसला उस पर ही दिखने की संभावना है।
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