नई दिल्ली: भारतीय कंपनियों में काम करने वाले विदेशी कर्मचारियों को भी अब कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) का सदस्य बनना जरूरी होगा। चाहे उनकी आमदनी कितनी भी हो, उन्हें इस फंड में पैसा जमा कराना ही होगा। इस बारे में दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है।
कोर्ट ने एम्प्लॉइज प्रोविडेंट फंड्स एंड मिसलेनियस प्रोविजन्स एक्ट 1952 में किए गए बदलावों को सही ठहराया है। साथ ही सरकार की साल 2008 और साल 2010 की उन सूचनाओं को भी मंजूरी दी है, जिनके तहत विदेशी कर्मचारियों के लिए एम्प्लॉइज प्रोविडेंट फंड (EPF) में योगदान देना अनिवार्य किया गया है।
कब मिलेगा ईपीएफ का पैसा?इस नए नियम के तहत विदेशी कर्मचारियों को अपना पूरा ईपीएफ का पैसा तभी मिलेगा जब वे 58 साल की उम्र के बाद रिटायर होंगे। या फिर अगर वे किसी ऐसी बीमारी या चोट का शिकार हो जाते हैं जिससे वे पूरी तरह से काम करने लायक न रहें। यह फैसला उन विदेशी कर्मचारियों के लिए एक झटका माना जा रहा है जो आमतौर पर भारत में सिर्फ दो से पांच साल के लिए काम करने आते हैं।
इसके उलट भारतीय कर्मचारियों को तब योगदान देना होता है जब उनकी आमदनी 15,000 रुपये प्रति माह से कम हो। कानूनी जानकारों का कहना है कि कई विदेशी कर्मचारी पहले ही भारत छोड़ चुके हैं, ऐसे में अब कंपनियों को उनके हिस्से का भी योगदान देना पड़ेगा।
कोर्ट ने क्यों दिया फैसला?चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने कहा कि विदेशी और भारतीय कर्मचारियों के बीच अंतर करना बिल्कुल सही है। कोर्ट ने सरकार की इस बात को माना कि विदेशी कर्मचारी एक अलग समूह हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे भारत में अपने सीमित समय के दौरान ही योगदान देते हैं, जबकि भारतीय कर्मचारी अपनी पूरी नौकरी के दौरान योगदान करते हैं।
कोर्ट ने खारिज की कंपनियों की याचिकाएंकोर्ट ने ईपीएफओ की उन चिट्ठियों को भी सही ठहराया जिनमें स्पाइसजेट (SpiceJet) और एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया (LG Electronics India) को अपने विदेशी कर्मचारियों के लिए प्रोविडेंट फंड और उससे जुड़े बाकी पैसे जमा कराने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने SpiceJet की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें साल 2012 में जारी किए गए समन को चुनौती दी गई थी। इन समन में SpiceJet को अपने विदेशी कर्मचारियों की देनदारियों का पता लगाने के लिए रिकॉर्ड पेश करने को कहा गया था। इसी तरह LG Electronics की आपत्तियों को भी कोर्ट ने ठुकरा दिया।
कोर्ट ने एम्प्लॉइज प्रोविडेंट फंड्स एंड मिसलेनियस प्रोविजन्स एक्ट 1952 में किए गए बदलावों को सही ठहराया है। साथ ही सरकार की साल 2008 और साल 2010 की उन सूचनाओं को भी मंजूरी दी है, जिनके तहत विदेशी कर्मचारियों के लिए एम्प्लॉइज प्रोविडेंट फंड (EPF) में योगदान देना अनिवार्य किया गया है।
कब मिलेगा ईपीएफ का पैसा?इस नए नियम के तहत विदेशी कर्मचारियों को अपना पूरा ईपीएफ का पैसा तभी मिलेगा जब वे 58 साल की उम्र के बाद रिटायर होंगे। या फिर अगर वे किसी ऐसी बीमारी या चोट का शिकार हो जाते हैं जिससे वे पूरी तरह से काम करने लायक न रहें। यह फैसला उन विदेशी कर्मचारियों के लिए एक झटका माना जा रहा है जो आमतौर पर भारत में सिर्फ दो से पांच साल के लिए काम करने आते हैं।
इसके उलट भारतीय कर्मचारियों को तब योगदान देना होता है जब उनकी आमदनी 15,000 रुपये प्रति माह से कम हो। कानूनी जानकारों का कहना है कि कई विदेशी कर्मचारी पहले ही भारत छोड़ चुके हैं, ऐसे में अब कंपनियों को उनके हिस्से का भी योगदान देना पड़ेगा।
कोर्ट ने क्यों दिया फैसला?चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने कहा कि विदेशी और भारतीय कर्मचारियों के बीच अंतर करना बिल्कुल सही है। कोर्ट ने सरकार की इस बात को माना कि विदेशी कर्मचारी एक अलग समूह हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे भारत में अपने सीमित समय के दौरान ही योगदान देते हैं, जबकि भारतीय कर्मचारी अपनी पूरी नौकरी के दौरान योगदान करते हैं।
कोर्ट ने खारिज की कंपनियों की याचिकाएंकोर्ट ने ईपीएफओ की उन चिट्ठियों को भी सही ठहराया जिनमें स्पाइसजेट (SpiceJet) और एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया (LG Electronics India) को अपने विदेशी कर्मचारियों के लिए प्रोविडेंट फंड और उससे जुड़े बाकी पैसे जमा कराने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने SpiceJet की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें साल 2012 में जारी किए गए समन को चुनौती दी गई थी। इन समन में SpiceJet को अपने विदेशी कर्मचारियों की देनदारियों का पता लगाने के लिए रिकॉर्ड पेश करने को कहा गया था। इसी तरह LG Electronics की आपत्तियों को भी कोर्ट ने ठुकरा दिया।
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