पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी देखने को मिला। 6 नवंबर को पहले चरण में प्रारंभिक सूचना के अनुसार 65 प्रतिशत से अधिक मतदान की खबर है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार मतदान प्रतिशत बढ़ने का चुनावी परिणामों पर असर हमेशा सीधा और निश्चित नहीं होता है, लेकिन यह कई महत्वपूर्ण संकेत देता है और परिणाम को प्रभावित करने वाले कारकों को बदल सकता है। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में लगभग 57 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।
सरकार पर विश्वास के कारण वोट प्रतिशत में वृद्धि
मजबूत जनादेश: जब अधिक मतदाता भाग लेते हैं, तो यह माना जाता है कि चुनाव परिणाम पूरी आबादी की इच्छा को बेहतर ढंग से दर्शाते हैं। इससे निर्वाचित सरकार को शासन करने के लिए एक अधिक मजबूत और व्यापक जनादेश प्राप्त होता है। उच्च मतदान निर्वाचित प्रतिनिधियों पर मतदाताओं के प्रति अधिक जवाबदेह होने का दबाव बनाता है, क्योंकि उन्हें पता होता है कि बड़ी संख्या में लोग चुनाव प्रक्रिया में रुचि ले रहे हैं।
एंटी-इंकम्बेंसी का संकेत
बदलाव की लहर: अक्सर, बहुत अधिक मतदान तब होता है जब मतदाता मौजूदा सरकार के प्रति गहरी नाराजगी महसूस करते हैं और बदलाव लाने के लिए बड़ी संख्या में बाहर निकलते हैं। ऐसे मामलों में, उच्च मतदान से सत्ताधारी दल को नुकसान होने की संभावना होती है। हालांकि, यह कोई निश्चित नियम नहीं है। कई चुनावों में उच्च मतदान हुआ है, फिर भी सत्ताधारी दल वापस आ गया है। इसका मतलब है कि नया मतदान करने वाला वर्ग सरकार से संतुष्ट भी हो सकता है और अपने समर्थन को मजबूत करने के लिए बाहर निकला हो।
नए या मौन मतदाताओं का प्रभाव
जब मतदान प्रतिशत बढ़ता है, तो इसमें अक्सर वे मतदाता शामिल होते हैं जो पिछले चुनावों में वोट नहीं देते थे (जैसे युवा, पहली बार मतदाता या उदासीन शहरी मतदाता)। ये 'नए' मतदाता किसी विशेष पार्टी के प्रति वफादार नहीं होते हैं, और उनका पैटर्न (जातीय या पारंपरिक) पुराने वोटों से अलग हो सकता है। यदि यह नया वर्ग एकतरफा वोट करता है, तो यह चुनावी नतीजों को अप्रत्याशित रूप से बदल सकता है।
शहरी बनाम ग्रामीण विभाजन
बिहार के पिछले चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में मतदान हमेशा शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक रहा है। यदि एसआईआर (विशेष गहन संशोधन) अभियान के बाद मतदाता सूची अधिक शुद्ध हुई है, और शहरी क्षेत्रों (जैसे पटना) से बड़ी संख्या में नाम हटाए गए हैं, तो मतदान बढ़ने का मतलब यह हो सकता है कि अब असली और सक्रिय ग्रामीण मतदाता अधिक प्रभावी हो रहे हैं, जिससे ग्रामीण हितों को प्राथमिकता देने वाले दलों को लाभ हो सकता है।
सरकार पर विश्वास के कारण वोट प्रतिशत में वृद्धि
मजबूत जनादेश: जब अधिक मतदाता भाग लेते हैं, तो यह माना जाता है कि चुनाव परिणाम पूरी आबादी की इच्छा को बेहतर ढंग से दर्शाते हैं। इससे निर्वाचित सरकार को शासन करने के लिए एक अधिक मजबूत और व्यापक जनादेश प्राप्त होता है। उच्च मतदान निर्वाचित प्रतिनिधियों पर मतदाताओं के प्रति अधिक जवाबदेह होने का दबाव बनाता है, क्योंकि उन्हें पता होता है कि बड़ी संख्या में लोग चुनाव प्रक्रिया में रुचि ले रहे हैं।
एंटी-इंकम्बेंसी का संकेत
बदलाव की लहर: अक्सर, बहुत अधिक मतदान तब होता है जब मतदाता मौजूदा सरकार के प्रति गहरी नाराजगी महसूस करते हैं और बदलाव लाने के लिए बड़ी संख्या में बाहर निकलते हैं। ऐसे मामलों में, उच्च मतदान से सत्ताधारी दल को नुकसान होने की संभावना होती है। हालांकि, यह कोई निश्चित नियम नहीं है। कई चुनावों में उच्च मतदान हुआ है, फिर भी सत्ताधारी दल वापस आ गया है। इसका मतलब है कि नया मतदान करने वाला वर्ग सरकार से संतुष्ट भी हो सकता है और अपने समर्थन को मजबूत करने के लिए बाहर निकला हो।
नए या मौन मतदाताओं का प्रभाव
जब मतदान प्रतिशत बढ़ता है, तो इसमें अक्सर वे मतदाता शामिल होते हैं जो पिछले चुनावों में वोट नहीं देते थे (जैसे युवा, पहली बार मतदाता या उदासीन शहरी मतदाता)। ये 'नए' मतदाता किसी विशेष पार्टी के प्रति वफादार नहीं होते हैं, और उनका पैटर्न (जातीय या पारंपरिक) पुराने वोटों से अलग हो सकता है। यदि यह नया वर्ग एकतरफा वोट करता है, तो यह चुनावी नतीजों को अप्रत्याशित रूप से बदल सकता है।
शहरी बनाम ग्रामीण विभाजन
बिहार के पिछले चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में मतदान हमेशा शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक रहा है। यदि एसआईआर (विशेष गहन संशोधन) अभियान के बाद मतदाता सूची अधिक शुद्ध हुई है, और शहरी क्षेत्रों (जैसे पटना) से बड़ी संख्या में नाम हटाए गए हैं, तो मतदान बढ़ने का मतलब यह हो सकता है कि अब असली और सक्रिय ग्रामीण मतदाता अधिक प्रभावी हो रहे हैं, जिससे ग्रामीण हितों को प्राथमिकता देने वाले दलों को लाभ हो सकता है।
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