सासाराम: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच करगहर सीट एक बार फिर सुर्खियों में है। सासाराम अनुमंडल के अंतर्गत आने वाला यह क्षेत्र पूरी तरह ग्रामीण है और 257 गांवों से मिलकर बना है। जिला मुख्यालय सासाराम ही इसका सबसे नजदीकी शहरी केंद्र है। यहां की अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन आज भी कृषि पर टिका है। इस बार एनडीए की ओर से जदयू प्रत्याशी बशिष्ठ सिंह, महागठबंधन से कांग्रेस के संतोष मिश्रा, और जन सुराज से रितेश रंजन पांडेय चुनावी मैदान में हैं। यानी मुकाबला एक बार फिर त्रिकोणीय होने जा रहा है।
करगहर सीट का इतिहास
करगहर की पहचान लंबे समय तक सासाराम से जुड़ी रही है। प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों ही रूपों में यह सासाराम का हिस्सा था। 2008 में परिसीमन के बाद इसे अलग विधानसभा क्षेत्र का दर्जा मिला और 2010 में यहां पहली बार चुनाव हुआ।
करगहर में किस जाति का बोलबाला, कितने वोटर?
चुनाव आयोग के 2024 के आंकड़ों के अनुसार करगहर की कुल आबादी 5,67,156 है, जिसमें पुरुष 2,94,543, महिलाएं 2,72,613 हैं। कुल मतदाता: 3,29,466 (पुरुष 1,72,706, महिलाएं 1,56,750, थर्ड जेंडर 10) है।
सामाजिक रूप से यहां अनुसूचित जाति की आबादी 20.41%, मुस्लिम मतदाता करीब 6.4% हैं। वहीं ओबीसी और सवर्ण वर्ग का भी प्रभावी हिस्सा है, जो हर बार के चुनावी समीकरण को निर्णायक बनाता है।
शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति
करगहर में शिक्षा का स्तर अब भी पिछड़ा हुआ है। उच्च शिक्षा संस्थानों की कमी और स्कूलों में संसाधनों का अभाव बड़ी चुनौती है। युवाओं को रोजगार और बेहतर शिक्षा के लिए बाहर जाना पड़ता है। स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति भी कमजोर है — कई पंचायतों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सही ढंग से काम नहीं कर रहे।
करगहर के स्थानीय मुद्दे क्या?
करगहर की सबसे बड़ी समस्याएं शिक्षा, रोजगार और बुनियादी ढांचा हैं। ग्रामीण इलाकों में सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी अब भी बरकरार है। कृषि यहां की रीढ़ है, लेकिन सिंचाई की सुविधा सीमित होने से किसान हर साल नुकसान झेलते हैं।
स्थानीय लोग उम्मीद कर रहे हैं कि आने वाली सरकार इन बुनियादी जरूरतों पर ध्यान देगी और क्षेत्र को विकास की मुख्यधारा से जोड़ेगी।
2025 में किसका पलड़ा भारी?
करगहर में ओबीसी, सवर्ण और दलित वोटरों का मिश्रण इसे हर चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले का केंद्र बना देता है। 2025 के करहर चुनाव में जातिगत समीकरणों में बड़ा उलटफेर देखने को मिल रहा है। पहले जहां राजपूत उम्मीदवार की मौजूदगी नतीजों को प्रभावित करती थी, वहीं अब उनकी गैरमौजूदगी एक नया समीकरण बना रही है।
इधर उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान की पार्टियों का एनडीए गठबंधन में शामिल होना भी इस बार के चुनाव को खास बना रहा है। इन नेताओं के समर्थक वोट बैंक, खासकर राजपूत, कुशवाहा और पासवान समुदायों के वोट, अब हार और जीत के बीच का फैसला तय करने में बहुत महत्वपूर्ण हो गए हैं।
राजद अपने यादव-मुस्लिम समीकरण पर भरोसा करता है। वहीं जदयू का आधार कुर्मी-दलित वोट बैंक है। भाजपा की सवर्ण पकड़ भी मजबूत है। ऐसे में 2025 के चुनाव में महागठबंधन बनाम एनडीए के बीच कड़ा मुकाबला तय माना जा रहा है।
करगहर सीट का इतिहास
करगहर की पहचान लंबे समय तक सासाराम से जुड़ी रही है। प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों ही रूपों में यह सासाराम का हिस्सा था। 2008 में परिसीमन के बाद इसे अलग विधानसभा क्षेत्र का दर्जा मिला और 2010 में यहां पहली बार चुनाव हुआ।
करगहर में किस जाति का बोलबाला, कितने वोटर?
चुनाव आयोग के 2024 के आंकड़ों के अनुसार करगहर की कुल आबादी 5,67,156 है, जिसमें पुरुष 2,94,543, महिलाएं 2,72,613 हैं। कुल मतदाता: 3,29,466 (पुरुष 1,72,706, महिलाएं 1,56,750, थर्ड जेंडर 10) है।
सामाजिक रूप से यहां अनुसूचित जाति की आबादी 20.41%, मुस्लिम मतदाता करीब 6.4% हैं। वहीं ओबीसी और सवर्ण वर्ग का भी प्रभावी हिस्सा है, जो हर बार के चुनावी समीकरण को निर्णायक बनाता है।
शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति
करगहर में शिक्षा का स्तर अब भी पिछड़ा हुआ है। उच्च शिक्षा संस्थानों की कमी और स्कूलों में संसाधनों का अभाव बड़ी चुनौती है। युवाओं को रोजगार और बेहतर शिक्षा के लिए बाहर जाना पड़ता है। स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति भी कमजोर है — कई पंचायतों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सही ढंग से काम नहीं कर रहे।
करगहर के स्थानीय मुद्दे क्या?
करगहर की सबसे बड़ी समस्याएं शिक्षा, रोजगार और बुनियादी ढांचा हैं। ग्रामीण इलाकों में सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी अब भी बरकरार है। कृषि यहां की रीढ़ है, लेकिन सिंचाई की सुविधा सीमित होने से किसान हर साल नुकसान झेलते हैं।
स्थानीय लोग उम्मीद कर रहे हैं कि आने वाली सरकार इन बुनियादी जरूरतों पर ध्यान देगी और क्षेत्र को विकास की मुख्यधारा से जोड़ेगी।
2025 में किसका पलड़ा भारी?
करगहर में ओबीसी, सवर्ण और दलित वोटरों का मिश्रण इसे हर चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले का केंद्र बना देता है। 2025 के करहर चुनाव में जातिगत समीकरणों में बड़ा उलटफेर देखने को मिल रहा है। पहले जहां राजपूत उम्मीदवार की मौजूदगी नतीजों को प्रभावित करती थी, वहीं अब उनकी गैरमौजूदगी एक नया समीकरण बना रही है।
इधर उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान की पार्टियों का एनडीए गठबंधन में शामिल होना भी इस बार के चुनाव को खास बना रहा है। इन नेताओं के समर्थक वोट बैंक, खासकर राजपूत, कुशवाहा और पासवान समुदायों के वोट, अब हार और जीत के बीच का फैसला तय करने में बहुत महत्वपूर्ण हो गए हैं।
राजद अपने यादव-मुस्लिम समीकरण पर भरोसा करता है। वहीं जदयू का आधार कुर्मी-दलित वोट बैंक है। भाजपा की सवर्ण पकड़ भी मजबूत है। ऐसे में 2025 के चुनाव में महागठबंधन बनाम एनडीए के बीच कड़ा मुकाबला तय माना जा रहा है।
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