नई दिल्ली : अमेरिका और चीन दुनिया को दो सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्तियां हैं। दोनों देशों के बीच कई मोर्चों पर जंग चल रही है। इनमें से एक जंग खनिज संपदा से भरपूर अफ्रीका महाद्वीप के संसाधनों पर कब्जा करने की भी है। अफ्रीका में सोने और हीरे की बड़ी खदानों के अलावा लीथियम, रेयर अर्थ, कोबाल्ट और टंगस्टन के भी बड़े भंडार हैं। इनका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक गाड़ियों से लेकर एआई डेटा सेंटर्स और वेपन सिस्टम्स में होता है।
चीन कई साल से अफ्रीकी देशों में अपना निवेश बढ़ा रहा है। 2012 में उसने अमेरिका को पछाड़कर अफ्रीका के सबसे बड़े निवेशक का तमगा हासिल किया और करीब एक दशक तक इसे अपने हाथ से जाने नहीं दिया। लेकिन बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में अमेरिका ने एक बार फिर अफ्रीका में अपनी खोई पोजीशन हासिल कर ली। अमेरिका ने 2023 अफ्रीका में 7.8 अरब डॉलर का निवेश किया जबकि चीन का निवेश 4 अरब डॉलर रहा।
चीन से मुकाबला
चीन दुनिया में क्रिटिकल मिनरल्स और मेटल्स का सबसे बड़ा सप्लायर है। उसके पास खुद इनका बड़ा भंडार है लेकिन साथ ही उसने खासकर अफ्रीका में भी बड़ा निवेश किया है। साथ ही चीन ने ग्लोबल सप्लाई की प्रोसेसिंग में भी अपना दबदबा कायम कर रखा है। वह अपनी इस पोजीशन को स्ट्रैटजिक वेपन की तरह यूज करता है और जब चाहे सप्लाई कम करता है। यही कारण है कि अमेरिका अब क्रिटिकल मिनरल्स और मेटल्स तक पहुंच बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम कर रहा है।
अफ्रीका में अमेरिका का निवेश की कमान सरकारी एजेंसी यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन संभाल रही है। इसकी स्थापना 2019 में डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान की गई थी। इसका मिशन चीन की बादशाहत को चुनौती देना है और एजेंसी कई मौकों पर अपना मकसद साफ कर चुकी है। पिछले साल रवांडा की माइनिंग कंपनी ट्रिनिटी मेटल्स को तीन माइन डेवलप करने के लिए एजेंसी ने 3.9 मिलियन की ग्रांट दी थी।
चीन कई साल से अफ्रीकी देशों में अपना निवेश बढ़ा रहा है। 2012 में उसने अमेरिका को पछाड़कर अफ्रीका के सबसे बड़े निवेशक का तमगा हासिल किया और करीब एक दशक तक इसे अपने हाथ से जाने नहीं दिया। लेकिन बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में अमेरिका ने एक बार फिर अफ्रीका में अपनी खोई पोजीशन हासिल कर ली। अमेरिका ने 2023 अफ्रीका में 7.8 अरब डॉलर का निवेश किया जबकि चीन का निवेश 4 अरब डॉलर रहा।
चीन से मुकाबला
चीन दुनिया में क्रिटिकल मिनरल्स और मेटल्स का सबसे बड़ा सप्लायर है। उसके पास खुद इनका बड़ा भंडार है लेकिन साथ ही उसने खासकर अफ्रीका में भी बड़ा निवेश किया है। साथ ही चीन ने ग्लोबल सप्लाई की प्रोसेसिंग में भी अपना दबदबा कायम कर रखा है। वह अपनी इस पोजीशन को स्ट्रैटजिक वेपन की तरह यूज करता है और जब चाहे सप्लाई कम करता है। यही कारण है कि अमेरिका अब क्रिटिकल मिनरल्स और मेटल्स तक पहुंच बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम कर रहा है।
अफ्रीका में अमेरिका का निवेश की कमान सरकारी एजेंसी यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन संभाल रही है। इसकी स्थापना 2019 में डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान की गई थी। इसका मिशन चीन की बादशाहत को चुनौती देना है और एजेंसी कई मौकों पर अपना मकसद साफ कर चुकी है। पिछले साल रवांडा की माइनिंग कंपनी ट्रिनिटी मेटल्स को तीन माइन डेवलप करने के लिए एजेंसी ने 3.9 मिलियन की ग्रांट दी थी।
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