नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक चौंकाने वाला दावा किया है। उन्होंने कहा है कि रूस, चीन और उत्तर कोरिया के साथ-साथ पाकिस्तान भी गुप्त रूप से परमाणु परीक्षण कर रहा है। ट्रंप के इस बयान से दक्षिण एशिया में परमाणु शक्ति संतुलन को लेकर नई चिंताएं पैदा हो गई हैं। बता दें कि एशिया की धरती में परमाणु परीक्षण कोई नई चीज नहीं है। भारत के 'ऑपरेशन शक्ति' का धमाका आज भी अमेरिका की यादों में है।
11 मई 1998 को, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था। यह परीक्षण डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व वाली वैज्ञानिकों की टीम ने अत्यंत गोपनीयता और चतुराई से अंजाम दिया था। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की कड़ी निगरानी के बावजूद, भारतीय वैज्ञानिकों ने उन्हें चकमा देने में कामयाबी हासिल की। इस 'ऑपरेशन शक्ति' ने भारत को एक परमाणु शक्ति संपन्न देश के रूप में स्थापित किया और दुनिया को अपनी सैन्य क्षमता का अहसास कराया। यह भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण था, पहला 1974 में 'स्माइलिंग बुद्धा' नाम से हुआ था।
पोखरण परमाणु परीक्षण, जिसे 'ऑपरेशन शक्ति' के नाम से जाना जाता है, भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। 11 मई 1998 को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में यह परीक्षण किया गया था। यह भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण था, पहला 1974 में 'स्माइलिंग बुद्धा' के नाम से हुआ था। इस परीक्षण ने भारत को एक परमाणु शक्ति संपन्न देश के रूप में स्थापित किया और दुनिया को अपनी सैन्य क्षमता का एहसास कराया।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का शानदार नेतृत्वइस मिशन की सफलता का श्रेय डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व वाली वैज्ञानिकों की टीम को जाता है। उन्होंने इस पूरे ऑपरेशन को अत्यंत गोपनीयता और चतुराई से अंजाम दिया। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की कड़ी निगरानी के बावजूद, भारतीय वैज्ञानिकों ने उन्हें चकमा देने में कामयाबी हासिल की। सीआईए ने पोखरण क्षेत्र पर नजर रखने के लिए चार सैटेलाइट तैनात किए थे, लेकिन भारतीय टीम ने अपनी गुप्त संचार प्रणाली और नकली नामों का इस्तेमाल करके उन्हें भ्रमित कर दिया।
कोड भाषा का इस्तेमालवैज्ञानिकों ने आपस में बात करने के लिए कोड भाषा का इस्तेमाल किया और एक-दूसरे को नकली नामों से पुकारा। डॉ. कलाम को 'कर्नल पृथ्वीराज' का नकली नाम दिया गया था। वे कभी भी समूह में परीक्षण स्थल पर नहीं जाते थे, बल्कि अकेले जाते थे ताकि किसी को उन पर शक न हो। परीक्षण के दिन, सभी को सेना की वर्दी में परीक्षण स्थल पर ले जाया गया, ताकि खुफिया एजेंसियों को यह लगे कि वे केवल सैन्य अभ्यास कर रहे हैं।
परमाणु बमों को अत्यंत गुप्त तरीके से जैसलमेर लाया गया था। 10 मई की रात को योजना को अंतिम रूप दिया गया और तड़के करीब 3 बजे, परमाणु बमों को सेना के चार ट्रकों में ले जाया गया। इससे पहले, उन्हें मुंबई से भारतीय वायुसेना के विमान से जैसलमेर बेस पर लाया गया था। ऑपरेशन के दौरान, दिल्ली के ऑफिस में भी कोड वर्ड्स का इस्तेमाल किया जाता था। उदाहरण के लिए, परमाणु बम के एक दस्ते को 'ताजमहल' कहा जाता था, जबकि अन्य कोड वर्ड्स में 'वाइट हाउस' और 'कुंभकरण' शामिल थे।
पोखरण को क्यों चुना गया? पोखरण को परीक्षण के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि वहां आबादी बहुत कम थी। यह इलाका जैसलमेर से लगभग 110 किलोमीटर दूर स्थित है। वैज्ञानिकों ने रेगिस्तान में बड़े कुएं खोदे और उनमें परमाणु बम रखे। इन कुओं को रेत के पहाड़ों से ढक दिया गया और ऊपर से मोटे तार निकले हुए थे। धमाके के बाद, आसमान में धुएं का एक विशाल गुबार उठा और विस्फोट स्थल पर एक बड़ा गड्ढा बन गया। लगभग 20 वैज्ञानिकों का एक समूह कुछ दूरी पर खड़ा होकर इस पूरे घटनाक्रम का गवाह बना।
भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धियह परीक्षण भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि भी थी। भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, इसलिए इस परीक्षण से उसने किसी भी अंतरराष्ट्रीय समझौते का उल्लंघन नहीं किया था। परीक्षण के बाद, प्रधानमंत्री वाजपेयी ने घोषणा की कि भारत ने पोकरण रेंज में एक भूमिगत परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक किया है। डॉ. कलाम ने भी परीक्षण के सफल होने की पुष्टि की थी।
इंटरनेशनल प्रेशर के बीच परीक्षणडॉ. कलाम ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उस समय भारत पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी दबाव था। लेकिन, प्रधानमंत्री वाजपेयी ने दृढ़ निश्चय किया कि भारत परीक्षण करेगा। परीक्षण के बाद, भारत को कई देशों की आलोचना का सामना करना पड़ा, लेकिन भारत ने अपने फैसले को सही ठहराया और कहा कि यह परीक्षण उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक था।
दुनिया को बड़ा संदेशइस परीक्षण ने भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया और दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत किसी से कम नहीं है। इस मिशन की सफलता में कई वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का अमूल्य योगदान था, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण से इसे संभव बनाया। यह घटना भारत के रक्षा इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में दर्ज है।
11 मई 1998 को, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था। यह परीक्षण डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व वाली वैज्ञानिकों की टीम ने अत्यंत गोपनीयता और चतुराई से अंजाम दिया था। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की कड़ी निगरानी के बावजूद, भारतीय वैज्ञानिकों ने उन्हें चकमा देने में कामयाबी हासिल की। इस 'ऑपरेशन शक्ति' ने भारत को एक परमाणु शक्ति संपन्न देश के रूप में स्थापित किया और दुनिया को अपनी सैन्य क्षमता का अहसास कराया। यह भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण था, पहला 1974 में 'स्माइलिंग बुद्धा' नाम से हुआ था।
पोखरण परमाणु परीक्षण, जिसे 'ऑपरेशन शक्ति' के नाम से जाना जाता है, भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। 11 मई 1998 को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में यह परीक्षण किया गया था। यह भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण था, पहला 1974 में 'स्माइलिंग बुद्धा' के नाम से हुआ था। इस परीक्षण ने भारत को एक परमाणु शक्ति संपन्न देश के रूप में स्थापित किया और दुनिया को अपनी सैन्य क्षमता का एहसास कराया।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का शानदार नेतृत्वइस मिशन की सफलता का श्रेय डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व वाली वैज्ञानिकों की टीम को जाता है। उन्होंने इस पूरे ऑपरेशन को अत्यंत गोपनीयता और चतुराई से अंजाम दिया। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की कड़ी निगरानी के बावजूद, भारतीय वैज्ञानिकों ने उन्हें चकमा देने में कामयाबी हासिल की। सीआईए ने पोखरण क्षेत्र पर नजर रखने के लिए चार सैटेलाइट तैनात किए थे, लेकिन भारतीय टीम ने अपनी गुप्त संचार प्रणाली और नकली नामों का इस्तेमाल करके उन्हें भ्रमित कर दिया।
कोड भाषा का इस्तेमालवैज्ञानिकों ने आपस में बात करने के लिए कोड भाषा का इस्तेमाल किया और एक-दूसरे को नकली नामों से पुकारा। डॉ. कलाम को 'कर्नल पृथ्वीराज' का नकली नाम दिया गया था। वे कभी भी समूह में परीक्षण स्थल पर नहीं जाते थे, बल्कि अकेले जाते थे ताकि किसी को उन पर शक न हो। परीक्षण के दिन, सभी को सेना की वर्दी में परीक्षण स्थल पर ले जाया गया, ताकि खुफिया एजेंसियों को यह लगे कि वे केवल सैन्य अभ्यास कर रहे हैं।
परमाणु बमों को अत्यंत गुप्त तरीके से जैसलमेर लाया गया था। 10 मई की रात को योजना को अंतिम रूप दिया गया और तड़के करीब 3 बजे, परमाणु बमों को सेना के चार ट्रकों में ले जाया गया। इससे पहले, उन्हें मुंबई से भारतीय वायुसेना के विमान से जैसलमेर बेस पर लाया गया था। ऑपरेशन के दौरान, दिल्ली के ऑफिस में भी कोड वर्ड्स का इस्तेमाल किया जाता था। उदाहरण के लिए, परमाणु बम के एक दस्ते को 'ताजमहल' कहा जाता था, जबकि अन्य कोड वर्ड्स में 'वाइट हाउस' और 'कुंभकरण' शामिल थे।
पोखरण को क्यों चुना गया? पोखरण को परीक्षण के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि वहां आबादी बहुत कम थी। यह इलाका जैसलमेर से लगभग 110 किलोमीटर दूर स्थित है। वैज्ञानिकों ने रेगिस्तान में बड़े कुएं खोदे और उनमें परमाणु बम रखे। इन कुओं को रेत के पहाड़ों से ढक दिया गया और ऊपर से मोटे तार निकले हुए थे। धमाके के बाद, आसमान में धुएं का एक विशाल गुबार उठा और विस्फोट स्थल पर एक बड़ा गड्ढा बन गया। लगभग 20 वैज्ञानिकों का एक समूह कुछ दूरी पर खड़ा होकर इस पूरे घटनाक्रम का गवाह बना।
भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धियह परीक्षण भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि भी थी। भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, इसलिए इस परीक्षण से उसने किसी भी अंतरराष्ट्रीय समझौते का उल्लंघन नहीं किया था। परीक्षण के बाद, प्रधानमंत्री वाजपेयी ने घोषणा की कि भारत ने पोकरण रेंज में एक भूमिगत परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक किया है। डॉ. कलाम ने भी परीक्षण के सफल होने की पुष्टि की थी।
इंटरनेशनल प्रेशर के बीच परीक्षणडॉ. कलाम ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उस समय भारत पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी दबाव था। लेकिन, प्रधानमंत्री वाजपेयी ने दृढ़ निश्चय किया कि भारत परीक्षण करेगा। परीक्षण के बाद, भारत को कई देशों की आलोचना का सामना करना पड़ा, लेकिन भारत ने अपने फैसले को सही ठहराया और कहा कि यह परीक्षण उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक था।
दुनिया को बड़ा संदेशइस परीक्षण ने भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया और दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत किसी से कम नहीं है। इस मिशन की सफलता में कई वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का अमूल्य योगदान था, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण से इसे संभव बनाया। यह घटना भारत के रक्षा इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में दर्ज है।
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